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कोरोना वायरस नहीं करता प्रवेश, ऐसी गलतफहमी का न बनें शिकार

Coronavirus: तिल का तेल लगाने से शरीर में कोरोना वायरस नहीं करता प्रवेश, ऐसी गलतफहमी का न बनें शिकार


इन दिनों कोरोना वायरस को लेकर कई तरह के मिथक प्रचलित हो रहे हैं। इन्हें लेकर आम लोगों में काफी भ्रम की स्थिति पैदा हो रही है। क्या है, इन मिथकों की सच्चाई, इस बारे में आपको बता रहा है ‘हिन्दुस्तान'

तिल का तेल लगाने से कोरोना वायरस शरीर में प्रवेश नहीं करता
सच्चाई : यह बात सही नहीं है कि तिल का तेल लगाने से कोरोना वायरस से बचाव होता है। यह एक सुनी-सुनाई बात है, जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं। हां, क्लोरोफॉर्म, ब्लीच, क्लोरीन आधारित कुछ रसायन हैं, जो कोरोना वायरस को नष्ट करने में सक्षम होते हैं, लेकिन दिक्कत यह है कि इन रसायनों का शरीर पर इस्तेमाल बहुत नुकसानदायक सिद्ध हो सकता है।

सरकारी संस्थाएं ज्यादा भरोसेमंद नहीं होती।
सच्चाई : अभी तक जब भी सार्स, मर्स, कोविड-19, इबोला जैसे संक्रमण फैले हैं, उनका सामना सरकारी मशीनरी के जरिये ही किया गया है। चाहे वह उनका प्रसार रोकने की बात हो, या इलाज की। सभी जगह सरकारी डॉक्टर, नर्स, पुलिस व दूसरे प्रशासनिक अमले ही मुस्तैद नजर आते हैं। सरकारी स्वास्थ्य एजेंसियां और संगठन ही ऐसे मामलों में डेटा का संग्रह करते हैं और संभावित उपचार की सलाह देते हैं। साथ ही, किसी दवा या टीके की खोज में भी सरकारी एजेंसियां महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इसलिए वैश्विक महामारी और संक्रमणों के मामले में सरकारी संस्थाएं ज्यादा भरोसेमंद हैं।

कोविड-19 और सार्स दोनों एक ही है।
सच्चाई : कोविड-19 के लिए जिम्मेदार वायरस और 2003 में ‘सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम’ (सार्स) का कारण बने वायरस आनुवंशिक रूप से एक-दूसरे से संबंधित हैं। लेकिन दोनों वायरस जो संक्रामक महामारियां फैलाते हैं, वे एक-दूसरे से अलग हैं। कोविड-19 के मुकाबले सार्स ज्यादा घातक था, उसमें मृत्यु दर ज्यादा थी। लेकिन, अगर संक्रमण की रफ्तार की बात करें तो कोविड-19 वायरस इस मामले में सार्स के वायरस से बहुत आगे है। गौरतलब है कि 2003 के बाद दुनिया में सार्स के मामले देखने को नहीं मिले हैं। बड़ी बात यह है कि अब तक हमारे पास इसकी दवा या टीका नहीं है।

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